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भारी बारिश के बाद क्या कारों की जगह अब नावें लेंगी?


भारी बारिश के बाद क्या कारों की जगह अब नावें लेंगी?
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बीते 24 घंटे में वायरल हुआ एक पोस्टर भारत की सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) की राजधानी के रूप में मशहूर बेंगलुरू के ताज़ा हालात को दर्शाती एक ग्राफिक पैरोडी है.

सोशल मीडिया पर वायरल इस पोस्टर में उबर के पन्ने को बदल दिया गया है और उसमें कारों की जगह नावों की पेशकश दी गई है.

सोशल पोस्ट

स्वाभाविक रूप से, बुरी तरह प्रभावित दक्षिण-पूर्वी बेंगलुरु के बाहरी रिंग रोड में जिस तरह पानी बह रहा है ये पोस्टर वायरल हो गया है.

एक और पोस्टर जिसे बिजनेसमैन मोहन दास पाई ने ट्वीट किया, उसे आईटी सेक्टर के नज़रिए से देखा जा रहा है.

Very true ⁦@BSBommai⁩ ⁦@CMofKarnataka⁩ ⁦@drashwathcn⁩ ⁦@AshwiniVaishnaw⁩ ⁦@Rajeev_GoI⁩ ⁦@kris_sg⁩ ⁦@kiranshaw⁩ ⁦@prashanthp⁩ pic.twitter.com/0np2PNud8G

— Mohandas Pai (@TVMohandasPai) September 5, 2022

पोस्ट Twitter समाप्त, 1

एक तीसरा ट्वीट भी है जिसमें उत्तर प्रदेश में समाज के एक वर्ग के घरों को गिराने में इस्तेमाल किए गए ‘राजनीतिक मुक्केबाज़ी के हथियार’ बुलडोज़र का इस्तेमाल दिखता है. हालांकि, यहां ये बुलडोज़र बचाव अभियान के बाद कुछ लोगों को सुरक्षित स्थान पर ले जा रहा है.

#bengaluru innovation Hub for a reason 💜#bengalururains #monsoon #BBMP #BellandurFloods #Bangalore pic.twitter.com/GTQs8HvSKt

— Govind Kumar (@hey__goku) September 5, 2022

पोस्ट Twitter समाप्त, 2

कोरोना वायरस
  • बेंगलुरू में रविवार की रात को आई भारी बारिश से बाढ़ की स्थिति पैदा हुई है.
  • भारतीय मौसम विभाग के स्थानीय कार्यालय ने बताया कि इतनी अधिक बारिश इससे पहले सितंबर 1998 (18 सेंटीमीटर) और 2014 (13.23 सेंटीमीटर) में हुई थी.
  • 3 सितंबर को 13.18 सेंटीमीटर बारिश हुई है.
कोरोना वायरस

Adventure vacations now at your front door, right here in Whitefield pic.twitter.com/fLVmoFrM5T

— devi yesodharan (@hype_atia) September 6, 2022

पोस्ट Twitter समाप्त, 3

बारिश की वजह से जमे मटमैले पानी से होकर जिन लोगों ने भी अपनी कारें गुज़ारी हैं उनके पैर कांप गए.

आईटी उद्योग में काम कर रहे एक व्यक्ति ने अपना नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा, “मैं एक मीटिंग में शामिल होने दफ़्तर गया. जब वहां पहुंचा तो कोई और दफ़्तर नहीं पहुंच सका था. तो मैं वापस आ गया, लेकिन सच मानिए कि मेरा कलेजा मुंह में आ गया और मेरे पैर बहुत बुरी तरह कांप रहे थे.”

इस अधिकारी ने कहा, कंपनी में मैं एक अहम पद पर कार्यरत हूं और ये बहुत शर्मनाक था कि अपने ही दफ़्तर के मैसेज पढ़ पाने में मैं नाकाम रहा. जिसमें दफ़्तर की ओर से काम पर आने से मना किया गया था क्योंकि आउटर रिंग रोड से होकर यहां किसी भी तरफ़ से पहुंच पाना मुश्किल था.”

साफ़्टवेयर उद्योग के केंद्र बेंगलुरू में इस कंपनी की तरह ही कई अन्य आईटी कंपनियों ने अपने कर्मचारियों को इस पूरे हफ़्ते घर से काम (वर्क फ्रॉम होम) करने को कहा है. वहीं कई स्कूल भी कोविड के दौरान जिस तरह ऑनलाइन चल रहे थे, उसी तरह चलाए जा रहे हैं.

बेंगलुरू में भारी बारिश से जलजमाव

इमेज स्रोत,GETTY IMAGES

ये तबाही क्यों?

मौसम विभाग के मुताबिक बेंगलुरू में हुई इस बारिश के पीछे शीर ज़ोन है जो समंदर से समंदर से 5-6 किलोमीटर की ऊंचाई पर बना हुआ है, इसमें गर्म हवाओं का एक ओर झुकाव होता है और साथ ही आस पास जलभराव के कारण बादल बनते हैं.

मौसम विभाग बेंगलुरू में वरिष्ठ वैज्ञानिक ए प्रसाद ने बीबीसी हिंदी से कहा, “यही वजह है कि दक्षिण और दक्षिण-पूर्व बेंगलुरू में शहर के नॉर्थ या इसके पूर्वोत्तर इलाके की तुलना में अधिक समस्याएं हुईं.”

लेकिन 11 डिग्री अक्षांश पर बने इस शीर ज़ोन की वजह से उस मांड्या ज़िले में ज़ोरदार बारिश हुई जहां कावेरी के पानी को साफ़ करके बेंगलुरू शहर के लिए पीने का पानी सप्लाई कराने के पंपिंग सेट लगाए गए हैं.

इन पंपिंग स्टेशन के इलाके में बहुत तेज़ बारिश जिसकी वजह से शहर में अगले दो-तीन दिनों के लिए पीने का पानी प्रभावित रहेगा.

बीबीएमपी के चीफ़ कमिश्नर तुषार गिरिनाथ ने बीबीसी हिंदी को बताया, सामान्य से तीन गुना या चार गुना अधिक बारिश का शहर को खामियाजा भुगतना पड़ रहा है. पहली बार, शहर के सभी जलाशय भरे हुए हैं. वहां और अधिक पानी के जाने की कोई गुंजाइश नहीं है. साफ़ तौर कहें तो कहीं अधिक भारी बारिश से हुए इन जल जमाव को हटाने की हमारे पास क्षमता नहीं है. 31 अगस्त को 120 मिलीमीटर बारिश और फिर 3 सितंबर को इतनी अधिक बारिश से शहर के लिए मुश्किल पैदा हुई है. हमें इस स्थिति को बाढ़ के तौर पर देखना चाहिए.”

गिरिनाथ ने बताया, “हालांकि, अथॉरिटी की कोशिशों से सोमवार को बुरी तरह प्रभावित क्षेत्रों की संख्या आधी हो गई है जो पहले 70 से अधिक थे.”

साथ ही उन्होंने ये भी बताया कि “स्टॉर्म वाटर ड्रेनेज सिस्टम (बरसाती पानी के निकासी की व्यवस्था) को साफ़ करने का काम भी चल रहा है. ये काम शुरू हो चुका है और आगे हम इसमें और भी तेज़ी लाएंगे.”

वीडियो कैप्शनचेतावनी: तीसरे पक्ष की सामग्री में विज्ञापन हो सकते हैं.

पोस्ट YouTube समाप्त, 1

बार-बार क्यों हो रही हैं समस्याएं?

कोरोना वायरस

बेंगलुरू में बार-बार हो रहे जल जमाव की बहुत आलोचना होती रही है और इस बार तो ये पहले से कहीं अधिक है.

एनजीओ जनग्रह के प्रमुख श्रीनिवासन अलावली बीबीसी हिंदी से कहती हैं, “इस बार इससे वो इलाके प्रभावित हैं जहां सोशल मीडिया पर बड़ी संख्या में लोग एक्टिव हैं इसलिए पहले की तुलना में ये आलोचना बड़े पैमाने पर है. साथ ही बाढ़ की स्थिति भी पहले से विकराल है. लेकिन ये स्थिति ख़त्म हो उससे पहले एक और भारी बारिश की संभावना है तो स्थिति और गंभीर हो सकती है.”

श्रीनिवासन कहती हैं, “यह व्यवस्था की समस्या है. बेंगलुरू में तालाबों का एक नेटवर्क है और यह ऊंचाई पर बसा है. बारिश से जो हालात पैदा हुए हैं वो 2015 में चेन्नई और अन्य शहरों जैसे कि हैदराबाद, कोलकाता और अन्य शहरों की स्थिति से अलग नहीं है.”

सभी शहरों में कमोबेश यही स्थिति है. जैसा कि चेन्नई में देखा गया, जो जगह कभी जल निकाय हुआ करते थे वहां आज बड़े-बड़े आवासीय और व्यावसायिक इमारतें बनी हैं.

वीडियो कैप्शन,बीते वर्ष (2021 में) बेंगलुरू में भारी बारिश से एक बहुमंज़िला इमारत ढह गई थी

शहरी योजनाकार वी रविचंदेर ने बीबीसी हिंदी से कहा, “विकास कार्यों ने प्रकृति की रूपरेखा का सम्मान नहीं किया. अगर आप समझते हैं कि प्रकृति के तौर तरीक़ों को आप अवरुद्ध कर सकते हैं तो आप ख़ुद को धोखा दे रहे हैं. हमने पानी के जलाशयों को आईटी पार्क में बदल दिया. प्रकृति उसका सम्मान नहीं करेगी.”

और यह समस्या जल्द ख़त्म होने नहीं जा रही.

रविचंदेर कहते हैं, “धीरे-धीरे स्थिति ख़राब ही होगी. इससे बढ़िया स्थिति नहीं होगी. हमने अपनी बसने की क्षमता से अधिक बसावट बना लिए हैं. बरसाती पानी के हमारे नाले भी पहले से छोटे हो गए हैं क्योंकि हमने इनकी सफ़ाई नहीं करवाई है. और यहीं सरकार की योग्यता की समस्या आती है.”

श्रीनिवासन कहती हैं, “यह ख़तरनाक चक्र है. मैं इस बात से सहमत हूं कि यह प्रशासन की कमी है. क्या इस तरह के बाढ़ की स्थिति के बाद कोई ऐसा है जो इस बार बार हो रही समस्या के आधार पर चुनाव हार गया हो? उन्होंने इसे जटिल बना दिया है. शायद ये 1991 के जैसी स्थिति है जब हमारे यहां आर्थिक सुधार हुआ था. शहर भले ही 21 सदी में है लेकिन यहां का शासन अभी 19वीं सदी में ही है.”

The sobering fact that you’re probably less likely to be flooded by a night’s rain if your part of Bangalore was built in the late 19th c, rather than in the 21st

— Shalini Srinivasan (@shal_srinivasan) September 5, 2022

पोस्ट Twitter समाप्त, 4

रविचंदेर के मुताबिक स्थिति में सुधार के लिए और एक उपाय ढूंढने के लिए आसपास के समूचे समुदाय को एकसाथ आना होगा. लोगों को सहयोग करना होगा, उन्हें तकनीकी विशेषज्ञ को ढूंढना होगा और उसे सरकार के पास ले जाना होगा और उसे लागू करवाना होगा और ये कहना होगा कि हम उसकी निगरानी करेंगे, इसके अलावा कोई उपाय नहीं है.”

वीडियो कैप्शन,

झरने के पास सेल्फ़ी ले रहे थे लोग, तभी आया ऐसा सैलाब

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