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भारत की आपत्ति को दरकिनार कर अमेरिका ने पाकिस्तान को क्यों दी है ये बड़ी मदद


भारत की आपत्ति को दरकिनार कर अमेरिका ने पाकिस्तान को क्यों दी है ये बड़ी मदद

अमेरिका की बाइडन सरकार ने पाकिस्तान को दिए एफ़-16 लड़ाकू विमानों के रखरखाव के लिए विशेष सस्टेनमेन्ट प्रोग्राम को मंज़ूरी दे दी है.

डिफेन्स सिक्योरिटी कोऑपरेशन एजेंसी (डीएससीए) ने एक बयान जारी कर कहा है कि इसके तहत पाकिस्तान सरकार के पास पहले से मौजूद एफ़-16 विमानों की मरम्मत की जाएगी और उपकरण भी दिए जाएँगे.

हालाँकि इसमें विमानों में नई कार्यक्षमता की कोई योजना नहीं है और इससे जुड़े नए हथियार भी नहीं दिए जाएँगे.

बयान के अनुसार, इससे आतंकवाद के ख़िलाफ़ अभियान में पाकिस्तान को मदद मिलेगी. हालांकि अमेरिका का कहना है कि इससे क्षेत्र के सैन्य संतुलन पर असर नहीं पड़ेगा.

वीडियो कैप्शन,रफ़ाल हो या F-16, लड़ाकू विमानों से क्या बदल जाएगा?

भारत की प्रतिक्रिया

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़ भारत ने पाकिस्तान के साथ एफ़-16 समझौते को लेकर कड़ी आपत्ति दर्ज कराई है. अंग्रेज़ी अख़बार द हिंदू के अनुसार पिछले दिनों अमेरिकी अधिकारी डोनाल्ड लू भारत के दौरे थे और इस दौरान भारतीय विदेश मंत्रालय ने इस पर अपनी आपत्ति बार-बार दर्ज कराई.

अख़बार ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि अधिकारियों ने डोनाल्ड लू के साथ हुई हर द्विपक्षीय बैठक के दौरान ये मुद्दा उठाया. डोनाल्ड लू क्वॉड के वरिष्ठ अधिकारियों की बैठक में शामिल होने दिल्ली आए थे.

द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार भारतीय पक्ष ने इस पर चिंता जताई कि एफ़-16 के लिए पाकिस्तान को तकनीकी सहायता उपलब्ध कराई जा रही है. एक ओर जहाँ पाकिस्तान ये दावा कर रहा है कि आतंकवाद विरोधी कार्रवाई के लिए ये सहायता ज़रूरी है, वहीं भारत सरकार का कहना है कि पाकिस्तान इसका इस्तेमाल उसके ख़िलाफ़ अभियान में करेगा.

इकॉनॉमिक टाइम्स में छपी रिपोर्ट के मुताबिक़ भारत सरकार ये नहीं मानती है कि इस समझौते से रिश्तों पर असर नहीं पड़ेगा. रिपोर्ट के अनुसार, भारत इससे नाराज़ है कि अमेरिका ने उसे इस नीतिगत फ़ैसले के बारे में पहले नहीं बताया, जबकि इस फ़ैसले से भारत की सुरक्षा पर असर पड़ सकता है.

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सौदे में क्या-क्या शामिल है

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ये सौदा पहले से बेचे गए एफ़-16 के रखरखाव पर लागू होगा ताकि विमान उड़ान भरने की स्थिति में रहें.

अमेरिका के अनुसार, इसके लिए पाकिस्तान ने अमेरिका से गुज़ारिश की थी.

सौदे के अनुसार विमान के इंजन में हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर मॉडिफिकेशन किए जाएंगे.

इंजन की मरम्मत और ज़रूरत पड़ने पर नए पार्ट्स लगाए जाएँगे.

विमानों के लिए सपोर्ट इक्विपमेन्ट दिए जाएँगे.

बयान के अनुसार ये सौदा अनुमानित 45 करोड़ डॉलर का होगा होगा और इस सौदे को पूरा करेगी लॉकहीड मार्टिन नाम की कंपनी.

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वीडियो कैप्शन,जेएफ़ 17 और तेजस, कौन सा लड़ाकू विमान है ज़्यादा ख़तरनाक?

बीते चार सालों में पाकिस्तान के लिए अमेरिका का ये बेहद अहम रक्षा फ़ैसला माना जा रहा है.

साल 2018 में बाइडन से पहले राष्ट्रपति रहे डोनाल्ड ट्रंप ने पाकिस्तान को दी जाने वाली तीन अरब डॉलर की रक्षा मदद को रद्द कर दिया था.

उनका कहना था कि पाकिस्तान अफ़ग़ान तालिबान और हक्कानी नेटवर्क जैसे गुटों पर लगाम लगाने में नाकाम रहा.

अमेरिका ने पाकिस्तान के अलावा बहरीन, बेल्जियम, मिस्र, ताइवान, डेनमार्क, नीदरलैंड्स, पोलैंड, पुर्तगाल, थाइलैंड जैसे मुल्कों को एफ़-16 दिए हैं.

वहीं उसने भारत के साथ अपाचे हेलिकॉप्टर के लिए सौदा किया है. साथ ही भारत के साथ उसका बड़ा डिफेन्स पार्टनरशिप प्रोग्राम भी है.

हथियारों के आयात को देखा जाए तो भारत अमेरिका के मुक़ाबले रूस से अधिक हथियार खरीदता रहा है. लेकिन हाल के दिनों में अमेरिका से और दूसरे देशों से भारत का हथियार ख़रीदना बढ़ा है.

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एफ़-16

भारत-अमेरिका रिश्तों पर पड़ क्या सकता है असर?

अमेरिका की विदेश नीति में भारत की जगह अहम है, दोनों अहम मुद्दों पर साझेदरी करते हैं, जी-20, क्वॉड, इंडो पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क जैसे फ़ोरम में साथ हैं. लेकिन दक्षिण एशियाई क्षेत्र में भारत और पाकिस्तान के बीच के तनावपूर्ण रिश्ते किसी से छिपे नहीं हैं.

ऐसे में अमेरिका के इस क़दम को भारत का कूटनीतिक तौर पर देखना लाज़मी है, क्योंकि भारत नहीं चाहेगा कि अमेरिका पाकिस्तान के साथ किसी तरह का रक्षा सौदा करे. पर क्या भारत और अमेरिका के रिश्तों पर इसका असर पड़ सकता है?

विदेश मामलों के जानकार मनोज जोशी कहते हैं कि भारत चाहे न चाहे उसे हर हाल में अमेरिका के इस फ़ैसले को मानना पड़ेगा.

वो कहते हैं, “पाकिस्तान ये दिखा चुका है कि उसकी स्थिति के कारण रणनीतिक तौर पर वो महत्वपूर्ण है और उसे कोई छोड़ नहीं सकता है. बीच में अमेरिका और पाकिस्तान के बीच रिश्ते थोड़े बिगड़े थे, लेकिन अमेरिका का ये फ़ैसला इस बात का संकेत है कि मसला सुधर चुका है और दोनों मुल्क अच्छे रिश्ते बनाने को तैयार हैं.”

वो कहते हैं, “अमेरिका ये नहीं चाहता कि वो केवल भारत का पक्ष ले और अफ़ग़ानिस्तान, मध्य एशिया, ईरान के साथ जुड़े पाकिस्तान जैसे अहम देश को नज़रअंदाज़ कर दे. अब अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान फिर सत्ता में आ चुका है और अमेरिका को यहाँ से बाहर जाना पड़ा है. वो चाहता है कि एशिया में ऐसी जगह अपने पैर टिकाए, जहाँ से वो अफ़ग़ानिस्तान पर निगरानी रख सके और यहाँ की क्षेत्रीय भू-राजनीति पर भी नज़र रखे.”

मनोज जोशी कहते हैं, “रूस-यूक्रेन युद्ध के शुरू होने के बाद से अमेरिका भारत के रवैए को लेकर ख़ुश नहीं है. कई बार अमेरिकी नेताओं ने भारत को रूस से तेल ख़रीदना बंद करने को कहा है. भारत अमेरिका के हितों को देखते हुए संभल कर क़दम उठाता रहा है और अमेरिका भी भारत के कुछ फ़ैसले को नज़रअंदाज़ करता रहा है. लेकिन अब उसने ये तय कर लिया है कि पाकिस्तान के साथ उनके रिश्ते स्थिर हो सकते हैं.”

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एफ़-16

इमेज स्रोत,EPA/OLIVIER HOSLET

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कब और कैसे बना एफ़-16

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1972 में जब हल्के लड़ाकू विमानों की ज़रूरत महसूस की गई थी, उस वक्त जेनरल डायनमिक्स नाम की कंपनी ने एफ़-16 विमान बनाया था. विमान का नाम था फाइटिंग फैल्कन यानी एफ़-16.

ये सिंगल सीट, सिंगल इंजन वाले जेट विमान थे जो आवाज़ की गति से दोगुने स्पीड से उड़ सकते थे और कई तरह की मिसाइलें, बम ले जाने में सक्षम थे.

ये कंपनी बाद में लॉकहीड मार्टिन कोऑपरेशन का हिस्सा बन गई थी.

अमेरिकी एयरफोर्स में इस विमान की पहली खेप पहुंची थी 1978 में.

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इस मामले में रक्षा विशेषज्ञ सुशांत सरीन कहते हैं, “अमेरिका इस मुद्दे पर कूटनीतिक खेल खेल रहा है. अमेरिका कहता रहा कि वो भारत का बहुत अच्छा मित्र है, लेकिन रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर वो भारत के स्टैंड से नाराज़ है क्योंकि भारत ने रूस के साथ संबंध रखना जारी रखा है.”

वो कहते हैं, “ये क़दम उठा कर वो इशारा कर रहा है कि अगर आप अपने हिसाब से खेलेंगे, तो हम भी पाकिस्तान को अपने खेल में शामिल कर सकते हैं. बस फर्क इतना है कि ये उनका संकीर्ण नज़रिया है, क्योंकि पाकिस्तान चीन के क़रीब जा रहा है और अमेरिका और चीन के बीच रिश्तों में तनाव बढ़ता ही जा रहा है. ऐसे में अमेरिका के लिए चीन के एक दोस्त की तरफ हाथ बढ़ाना और भारत को नाराज़ करना मुझे कम ही समझ आता है. इसका असर दोनों के बीच के भरोसे पर पड़ सकता है.”

वहीं रक्षा मामलों के जानकार राहुल बेदी कहते हैं, “भारत के लिए थोड़ी अजीब स्थिति होगी क्योंकि ट्रंप ने 2018 में पाकिस्तान के साथ सौदा रद्द कर दिया था, लेकिन बाइडन प्रशासन के इस फ़ैसले से लगता है कि वो पाकिस्तान की तरफ झुक रहा है. 45 करोड़ डॉलर का सौदा इस बात का संकेत है कि तीन-चार साल से पाकिस्तान के साथ उसके जो रिश्ते बिगड़ रहे थे वो अब सुधार की राह पर हैं.”

वो कहते हैं, “भारत की कूटनीति के लिहाज़ से वो अमेरिका को अपना दोस्त मानता है. वो भारत का दोस्त तो है लेकिन पाकिस्तान के साथ भी संबंध रखना चाहता है. इससे भारत की कूटनीति को सदमा लगेगा.”

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भारत-पाकिस्तान, एफ़-16 लड़ाकू विमान

इमेज स्रोत,GETTY IMAGES

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पाकिस्तान को एफ़16 विमान कब मिले और कैसे मिले

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पाकिस्तान ने सबसे पहले साल 1981 में अमेरिका से एफ़-16 विमान ख़रीदे. ये वो वक़्त था, जब सोवियत संघ ने अफ़ग़ानिस्तान पर हमला किया था.

लेकिन फिर दोनों मुल्कों के रिश्ते बिगड़े और पाकिस्तान से परमाणु कार्यक्रम पर चिंता जताते हुए इनमें से 28 विमानों की ख़रीद पर रोक लगा दी गई. चिंता थी कि पाकिस्तान इन विमानों का इस्तेमाल परमाणु हमले के लिए कर सकता है.

लेकिन इसके लिए पाकिस्तान पहले ही अमेरिका को 65.8 करोड़ डॉलर दे चुका था, जो बाद में अमेरिका ने उसे लौटाए.

लेकिन फिर साल 2001 में हालात बदले. 9/11 की घटना के बाद अमेरिका में ट्विन टावर्स पर आतंकवादी हमला हुआ था. उसके बाद एशिया, ख़ास कर पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान अमेरिकी विदेश नीति के लिहाज़ से बेहद अहम हो गए और तत्कालीन पाकिस्तानी राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ़ ने आतंकवाद के ख़िलाफ़ अभियान में अमेरिका का साथ देने का वादा किया.

इसके बाद अमेरिका ने पाकिस्तान को लेकर जो रोक लगाई थी, उसे हटाया और 18 आधुनिक एफ़-16 विमान पाकिस्तान को बेचे. साथ ही पहले से बेचे विमानों के लिए सपोर्ट देना जारी रखा.

2011 में एफ़-16 समेत सी-130, टी-37 और टी-33 विमानों के पुर्ज़ों के लिए 6.2 करोड़ डॉलर के सौदे को मंज़ूरी दी गई थी.

फिर 2016 में अमेरिका ने पाकिस्तान के साथ करीब 70 करोड़ डॉलर का सौदा किया था जिसके तहत उसे आठ एफ़-16 ब्लॉक 52 विमान बेचे गए थे.

इसके बाद 2019 में पाकिस्तान के अनुरोध पर एफ़-16 प्रोजेक्ट में तकनीकी मदद के लिए टैक्निकल सिक्योरिटी टीम के लिए साढ़े 12 करोड़ डॉलर के सौदे को मंज़ूरी दी गई थी.

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रफाल विमान

इमेज स्रोत,JOE GIDDENS/PA WIRE

रफाल विमान

रफ़ाल के मुक़ाबले एफ़-16 कितने ताक़तवर

लेकिन एक सवाल ये उठता है कि अब जब अमेरिका पाकिस्तान से इन विमानों को काम करने की स्थिति में बनाए रखने के लिए तैयार हो गया है, तो इसका पूरे क्षेत्र पर क्या असर पड़ेगा.

सवाल ये भी है कि इस सौदे का असर क्या पाकिस्तान की सैन्य ताक़त पर पड़ेगा?

भारत के पास भी जंगी विमानों का एक बड़ा बेड़ा मौजूद है जिसमें आधुनिक रफाल विमान भी हैं, जो भारत ने फ्रांस से ख़रीदे हैं. रफाल के मुक़ाबले एफ़-16 कितने ताक़तवर हैं?

राहुल बेदी कहते हैं “एफ़-16 लगभग 3.5 जेनरेशन एयरक्राफ्ट है वहीं रफ़ाल 4.5 जेनरेशन एयरक्राफ्ट है और काफ़ी बेहतर है. एफ़-16 का मुक़ाबला सुखोई-30 और मिराज 2000 भी कर सकते हैं.”

वो कहते हैं, “जैसा अमेरिका ने बयान में कहा है कि इससे इस क्षेत्र के सैन्य संतुलन पर ख़ास असर नहीं पड़ेगा क्योंकि ये सपोर्ट पैकेज है, न कि नए हथियारों का सौदा. पाकिस्तान पुराने वक्त से एफ़-16 चला रहा है.”

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पाकिस्तान के पास कितने एफ़-16 हैं?

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फॉरेन पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट के एरॉन स्टीन और रॉबर्ट हैमिल्टन की साल 2020 की एक अहम रिपोर्ट के अनुसार पाकिस्तान के पास कुल 85 एफ़-16 विमान हैं.

इनमें से 66 पुराने ब्लॉक 15 के हैं और 19 आधुनिक ब्लॉक 52 मॉडल हैं.

इस रिपोर्ट के अनुसार अब तक पाकिस्तान एफ़-16 विमानों के रखरखाव पर 3 अरब डॉलर से ज़्यादा खर्च कर चुका है.

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एफ़-16 लड़ाकू विमान

इमेज स्रोत,EPA

एक सवाल ये भी है कि क्या अमेरिका और चीन के बिगड़ते रिश्तों के मद्देनज़र पाकिस्तान अमेरिका के साथ रिश्ते बेहतर करना जारी रखेगा?

मनोज जोशी कहते हैं, “ये बात सच है कि पाकिस्तान एक तरफ अमेरिका से हथियार लेगा, तो चीन से भी हथियार लेना वो जारी रखेगा क्योंकि अमेरिका उसे हर तरह के हथियार नहीं देगा. लेकिन अमेरिका को इसका पहले ही अंदाज़ा है. पर उसे पाकिस्तान पर भरोसा है कि वो एक हद से ज़्यादा आगे नहीं जाएगा और वो अमेरिका के ख़िलाफ़ कुछ नहीं करेगा.”

हालांकि वो ये भी कहते हैं कि भारत के लिए मामला अभी उतना गंभीर नहीं लगता.

वो कहते हैं, “पाकिस्तान के मामले में अमेरिका बेहद सोच-समझ कर क़दम उठाएगा और भारत के लिए मामला तब गंभीर होगा, जब अमेरिका पाकिस्तान को नए हथियार देगा.”

वहीं राहुल बेदी कहते हैं, “अमेरिका के इस फ़ैसले से पाकिस्तान की सेना अधिक मज़बूत होगी, ऐसा नहीं है, लेकिन उसे कॉन्फिडेन्स मिलेगा. पाकिस्तान में बीते कुछ सालों में ये सोच बन गई थी कि अमेरिका ने पाकिस्तान को छोड़ दिया है, लेकिन अमेरिका के इस क़दम ने साबित कर दिया है कि पाकिस्तान की उसके साथ बने रहने की कोशिशें कामयाब हो रही हैं.”

वो कहते हैं, “मुझे लगता है कि ये शुरुआत है, आने वाले वक्त में भी अमेरिका पाकिस्तान को सपोर्ट करना जारी रखेगा. अमेरिका और एफ़-16 पाकिस्तान को देगा या नहीं ये तो पता नहीं, लेकिन ये तय है कि दोनों के रिश्ते बेहतर होंगे.”

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जब एफ़-16 को लेकर हुआ था विवाद

2019 में 27 फ़रवरी को पाकिस्तान ने भारत-पाकिस्तान सीमा के पास एफ़-16 विमान का इस्तेमाल किया था. बाद में भारतीय वायुसेना के एक मिग-21 बाइसन ने पाकिस्तान के एक एफ़-16 को नौशेरा सेक्टर में गिराने का दावा किया था.

Ingressing aircraft were observed to be at various levels. IAF fighters including MiG-21Bison, Su-30MKI, Mirage-2000 were tasked to intercept the intruder. PAF aircraft attempting to target military installations, were intercepted by IAF fighters & thwarted their plans. (2/5) pic.twitter.com/J2E1G8ZGQ9

— Indian Air Force (@IAF_MCC) March 1, 2019

पोस्ट Twitter समाप्त, 1

इसके ठीक एक दिन पहले 26 फ़रवरी को भारतीय वायु सेना ने रात के अंधेरे में नियंत्रण रेखा पार करके बालाकोट में जैश-ए-मोहम्मद के ‘ट्रेनिंग कैंपों’ पर ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ करने का दावा किया था.

इसके बाद ये ख़बरें आईं कि अमेरिकी रक्षा मंत्रालय के अधिकारियों ने पाकिस्तान के एफ़-16 विमानों की गिनती की थी और उनकी संख्या पूरी पाई गई. अमेरिकी रक्षा मंत्रालय के मुख्यालय पेंटागन ने इस तरह की जाँच से इनकार किया था.

हालांकि फिर ये ख़बर भी आई कि एक वरिष्ठ अमेरिकी कूटनीतिज्ञ ने पाकिस्तान एयर फोर्स के प्रमुख से एफ़-16 के ग़लत इस्तेमाल को लेकर सवाल किया था.

पाकिस्तान एयरफ़ोर्स का एफ़-16 विमान क्रैश

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