क्या आपको नालंदा ज़िले का ‘सोनू’ याद है?
वही ‘सोनू’ जो इस साल मई महीने की तपिश के बीच सुर्ख़ियों में थे. सोनू का वीडियो उस वक्त तेज़ी से वायरल हो रहा था.
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सामने खुद की पढ़ाई के लिए गुहार लगाते, शराबी पिता की शिकायत करते और आईएएस बनने की चाहत रखने वाले सोनू के अंदाज़-ए-बयां के तब चारों तरफ़ चर्चे थे. सोनू का घर और पूरा गांव नीमाकोल उस वक्त जैसे ‘पीपली लाइव’ बना हुआ था.
सुर्ख़ियों में रहने और वायरल हो जाने के बाद ‘सोनू’ तो जैसे-तैसे अपने गांव से बाहर निकल गए, लेकिन जो सवाल उन्होंने सीएम से पूछे थे, उन सवालों के जवाब मिलने अभी भी बाक़ी हैं.
एक निजी कोचिंग इंस्टीट्यूट की मदद से 11 साल के सोनू का रजिस्ट्रेशन राजस्थान के कोटा में हुआ है. निजी कोचिंग इंस्टीट्यूट बार-बार कहता रहा है कि सोनू को आईएएस बनाने तक वह उसका ख़र्च उठाएगा.

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लेकिन सवाल यह है कि सोनू ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सामने जो समस्या रखी थी, उसका क्या हुआ?
क्या उनके स्कूल (प्राथमिक विद्यालय नीमाकोल) की व्यवस्था में कुछ गुणात्मक सुधार हुआ? क्या सोनू की तरह गांव के दूसरे लड़के-लड़कियों के भी दिन फिरेंगे?
तीन महीने बाद (100 से अधिक दिन) नीमाकोल में बीबीसी ने यही जानने की कोशिश की.

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सोनू के स्कूल पहुंचने पर सबसे पहले मुलाक़ात शिवजी प्रसाद से हुई, जिन्हें सोनू की शिकायत के बाद वहां बतौर शिक्षक प्रतिनियुक्त (डेप्यूट) किया गया है. वे मीडियाकर्मियों से ख़ासा ख़फ़ा दिखे.
उनके अनुसार सोनू के वायरल होने के बाद ना जाने कितने ही मीडियाकर्मी स्कूल पहुंचे और वीडियो बनाकर ले गए, लेकिन स्कूल की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ. उन्होंने बताया, “बुनियादी सुविधा के लिहाज़ से यह हरनौत ब्लॉक का सबसे जर्जर स्कूल है. वायरल हो जाने के बाद भी यहां शौचालय पर फोकस नहीं. कोई फ़ैसिलिटी नहीं मिली.”
वो कहते हैं, “बच्चों के लिए खेल का कोई मैदान नहीं. प्रार्थना कराने के लिए भी सोचना पड़ता है. चापाकाल (हैंडपंप) बंद है. चलते चापाकाल का पानी पीने लायक नहीं. शिक्षक भी गांव से पानी मंगाकर पीते हैं. इसके अलावा बच्चों के लिए बेंच-डेस्क की सुविधा नहीं है. स्कूल में एक दरी तक नहीं है. किसी पदाधिकारी या अतिथि के चले आने पर उन्हें बिठाने के लिए कायदे की एक कुर्सी तक नहीं है.”

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सोनू के वायरल वीडियो की कहानी

- 14 मई 2022 को सीएम नीतीश कुमार नालंदा के अपने गांव कल्याण बिगहा गए थे.
- पास के नीमाकोल गांव के सोनू ने वहां उनसे मदद की गुहार लगाई. ये वीडियो वायरल हो गया.
- 5वीं क्लास के सोनू ने सीएम के सामने अपनी पढ़ाई की बात की और कहा कि गांव के सरकारी स्कूल की स्थिति ठीक नहीं.
- सोनू ने सीएम से कहा कि वो आईएएस बनना चाहते हैं लेकिन घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है.
- सोनू ने कहा कि शराबबंदी लागू होने के बावजूद उनके पिता के शराब पीते हैं.
- राजस्थान के एक निजी कोचिंग इंस्टीट्यूट ने सोनू को आईएएस बनाने तक ख़र्च उठाने की बात की है.
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क्या कह रहे हैं ग्रामीण और जन प्रतिनिधि?
ग़ौरतलब है कि नीमाकोल गांव का यह प्राथमिक विद्यालय प्रदेश के सीएम नीतीश कुमार के गृह ज़िले व प्रखंड के अंतर्गत पड़ने वाला एक विद्यालय है. सोनू के गांव नीमाकोल और सीएम नीतीश कुमार के गांव कल्याण बिगहा के बीच की दूरी दो किलोमीटर के आसपास है.
सोनू और सीएम नीतीश कुमार का ग्राम पंचायत एकदूसरे से सटा हुआ है.

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सोनू को सीएम के सामने ले जाने वाले सरथा ग्रामपंचायत के मुखिया प्रतिनिधि ‘रविशंकर’ कहते हैं, “देखिए शिक्षा की व्यवस्था एकदम से दयनीय है. प्रशासनिक दृष्टिकोण से बुरा हाल है. न बीईओ ध्यान देते हैं न डीईओ ध्यान देते हैं. मास्टर तो सिर्फ़ पढ़ा ही सकता है.”
वो कहते हैं, “इन्फ्रास्ट्रक्चर में सुधार तो शासन-प्रशासन के लोग ही करेंगे. वायरल होने के बाद भी स्कूल में बुनियादी सुविधाएं बहाल नहीं हो सकीं. हमारे लिए भी शर्म की बात है कि स्कूल में शौचालय नहीं है. अब तो एक शिक्षिका भी स्कूल आने लगी हैं. वो शौच के लिए कहां जाएंगी? मुझे भी यह ख़राब लगता है, लेकिन हम बहुत कुछ कर नहीं सकते. बीईओ से लेकर डीईओ को सारी चीज़ें पता होने के बावजूद जब सुधार नहीं हो रहा है तो फिर किससे क्या कहा जाए?”

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सोनू ने खुद की पढ़ाई के लिए सीएम से गुहार भी तब लगाई थी जब वे अपने गांव आए थे. सोनू की गुहार और शिकायत के बाद से भले ही तब प्रशासनिक अमला-जमला दिखावे के लिए सक्रिय हुआ हो लेकिन आज भी स्थितियां कमोबेश वैसी ही हैं.
सोनू की शिकायत और सरकार से अपेक्षा के सवाल पर नीमाकोल के रहवासी नरेश पासवान कहते हैं, “देखिए सोनू तो सारी बातें पहले ही बोल चुका है, वो भी मुख्यमंत्री के समक्ष. सोनू की शिकायत पर शिक्षकों की तो बदली कर दी गई. रही बात विधि-व्यवस्था की तो हमलोगों ने चापाकल और शौचालय को दुरुस्त कराने के लिए लिखा भी लेकिन आज तक कुछ हुआ नहीं. जबकि गांव में तब से अब तक तमाम आला अधिकारी और ज़िला शिक्षा पदाधिकारी आकर सबकुछ देख चुके हैं.”

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क्या कह रहे हैं ज़िला शिक्षा पदाधिकारी?
स्कूल के भीतर सुधार के लिए उनकी ओर से की जा रही कोशिशों के सवाल पर शिवजी प्रसाद कहते हैं कि वे सरकारी कर्मचारियों से लेकर प्रशासनिक सेवाधिकारियों से कई बार गुहार लगा चुके हैं लेकिन वे निराश हैं. वे कहते हैं कि उन्हें ऐसा लगता नहीं कि स्कूल में कभी बुनियादी सुविधाएं मिल सकेंगी.
शिवजी प्रसाद की कोशिशों और निराशा पर नालंदा ज़िले के जिला शिक्षा पदाधिकारी केशव प्रसाद कहते हैं, “देखिए नीमाकोल प्राथमिक विद्यालय को बेहतर करने के लिए हम कोशिश कर रहे हैं. तत्काल प्रभाव से बेंच-डेस्क की बात तो हम अभी नहीं कहेंगे लेकिन दरी की व्यवस्था हम करवा रहे हैं.”
वो कहते हैं, “हमारी प्राथमिकता है कि पहले हम मिडिल स्कूल तक बेंच-डेस्क पहुंचाएं फिर हम प्राथमिक विद्यालय तक भी पहुंचाएंगे. जहां तक टॉयलेट की बात है तो उसके लिए इस बार बजट आया है. हमारी कोशिश होगी कि वहां जल्द से जल्द शौचालय का निर्माण हो जाए.”
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