भारत और सऊदी अरब के रिश्ते की अहम बातें
- पिछले वित्त वर्ष में सऊदी अरब से भारत का द्विपक्षीय व्यापार 42.86 अरब डॉलर का था
- सऊदी अरब भारत का चौथा सबसे बड़ा ट्रेड पार्टनर है
- नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बनने के बाद दो बार सऊदी अरब जा चुके हैं
- सऊदी अरब में 26 लाख भारतीय काम करते हैं
- भारत सऊदी अरब से 18 फ़ीसदी कच्चा तेल और अपनी ज़रूरत की 30 फ़ीसदी एलपीजी सऊदी अरब से ही आयात करता है
एस जयशंकर भारत के विदेश मंत्री बनने के बाद पहली बार शनिवार को तीन दिवसीय दौरे पर सऊदी अरब पहुँचे थे.
एस जयशंकर की मुलाक़ात सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान से भी हुई थी. इस मुलाक़ात में उन्होंने क्राउन प्रिंस को पीएम मोदी का एक लिखित संदेश सौंपा था. सऊदी अरब भारत के लिए न केवल ऊर्जा ज़रूरतों के लिए अहम देश है बल्कि वहाँ 26 लाख भारतीय काम भी करते हैं.
ऐतिहासिक रूप से सऊदी अरब पाकिस्तान के क़रीब रहा है लेकिन बदलती वैश्विक परिस्थिति में भारत के साथ क़रीबी बढ़ी है. एस जयशंकर ने अपने सऊदी दौरे पर कहा कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में न केवल अपने प्रभावी आँकड़ों के कारण सऊदी अरब अहम खिलाड़ी है बल्कि ऊर्जा बाज़ार में भी काफ़ी मज़बूत है.
शनिवार को एस जयशंकर ने सऊदी गज़ट को दिए इंटरव्यू में बताया है कि भारत और सऊदी अरब का साथ क्यों ज़रूरी है. भारतीय विदेश मंत्री ने कहा कि सऊदी अरब भारत के लिए अहम आर्थिक साझेदार है.
पिछले वित्त वर्ष में सऊदी अरब से भारत का द्विपक्षीय व्यापार 42.86 अरब डॉलर का था. जयशंकर ने कहा कि हाल के वर्षों में दोनों देशों के पारस्परिक निवेश बढ़े हैं.
अक्टूबर 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी सऊदी अरब का दौरा किया था. 2019 में पीएम मोदी का दूसरा सऊदी दौरा था. इसी दौरे में सऊदी अरब के साथ स्ट्रैटिजिक पार्टनर्शिप काउंसिल (एसपीसी) पर सहमति बनी थी. जयशंकर एसपीसी की बैठक में ही शामिल होने सऊदी अरब गए थे.
सऊदी-भारत का साथ क्यों ज़रूरी?
एस जयशंकर ने कहा कि स्ट्रैटेजिक पार्टनर्शिप काउंसिल बनने के बाद दोनों देशों के बीच निवेश बढ़ा है. भारतीय विदेश मंत्री ने कहा कि भारत में सऊदी अरब 18वाँ सबसे बड़ा निवेशक है.
सऊदी ने भारत में 3.15 अरब डॉलर का निवेश किया है. जयशंकर ने कहा कि भारत की ओर से भी सऊदी अरब के आईटी, कंस्ट्रक्शन और ट्रांसपोर्टेशन में दो अरब डॉलर का निवेश हुआ है.
भारतीय विदेश मंत्री ने कहा, ”दोनों देशों के बीच अक्षय ऊर्जा, डिज़िटल अर्थव्यवस्था, माइनिंग, रिफाइनिंग, पेट्रोकेमिकल्स, इन्फ़्रास्ट्रक्चर, कृषि, मैन्युफैक्चरिंग, शिक्षा और स्वास्थ्य में सहयोग बढ़ाने पर बात हो रही है. मुझे उम्मीद है कि आने वाले दिनों में इन क्षेत्रों में दोनों देशों के बीच सहयोग और मज़बूत होगा.”
सऊदी गज़ट ने एस जयशंकर से पूछा कि नरेंद्र मोदी सऊदी अरब के ‘विज़न 2030’ के साथ काम करने की बात दोहराते रहते हैं. एसपीसी विज़न 2030 को लेकर कैसे काम कर रहा है?
इस सवाल के जवाब में एस जयशंकर ने कहा, ”कई ऐसे क्षेत्र हैं, जिनमें सऊदी अरब की परिकल्पना 2030 के लक्ष्यों को हासिल करने में भारत सहयोग कर रहा है. यहाँ तक कि सऊदी अरब ने विज़न 2030 के लक्ष्यों को हासिल करने के लिए रणनीतिक साझेदार के रूप में जिन आठ देशों की पहचान की हैं, उनमें भारत भी शामिल है.
“सऊदी अरब के विज़न 2030 के तहत दोनों देशों के बीच आर्थिक साझेदारी बढ़ाने की बात है. भारत की उभरती अर्थव्यवस्था से सऊदी अरब को निश्चित तौर पर फ़ायदा होगा. न केवल निवेश के ज़रिए बल्कि भारत के स्किल्ड मैनपावर से भी सऊदी अरब को फ़ायदा होगा.”
भारतीय विदेश मंत्री ने कहा, ”सांस्कृतिक मोर्चे पर भी दोनों देशों के बीच सहयोग बढ़ रहा है. 2010 में दोनों देशों ने सांस्कृतिक सहयोग के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किया था.”
बदली दुनिया में सऊदी अरब और भारत कितने बदले?
सऊदी गज़ट ने एस जयशंकर से पूछा कि कोविड के बाद दुनिया बदल गई है. इस बदली दुनिया में भारत और सऊदी अरब अपने रिश्ते को कैसे आगे बढ़ा रहे हैं?
इस सवाल के जवाब में एस जयशंकर ने कहा, ”कोविड महामारी से लड़ाई में भी दोनों देशों ने आपस में सहयोग किया. दोनों देशों ने महामारी में सप्लाई चेन बाधित नहीं होने दिया. भारत ने कोविड महामारी सऊदी अरब को 45 लाख कोविड वैक्सीन की डोज़ दी. दूसरी तरफ़ सऊदी अरब ने भारत में ऑक्सीज़न सिलिंडर भेजा. भारत और सऊदी अरब के बीच बढ़ते सहयोग से न केवल इस इलाक़े को फ़ायदा मिलेगा बल्कि पूरे वैश्विक समुदाय को इससे लाभ मिलेगा. दोनों देशों के बीच हर क्षेत्र में सहयोग है.”
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पाँच में से चार स्थायी सदस्य भारत की स्थायी सदस्यता के लिए समर्थन कर रहे हैं. क्या आप खाड़ी और मध्य-पूर्व के देशों से इस मामले समर्थन ले पाएंगे?
सऊदी गज़ट के इस सवाल के जवाब में एस जयशंकर ने कहा, ”भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है. दुनिया की पाँचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है. तकनीक का हब है. इसके अलावा पारंपरिक रूप में वैश्विक मामलों में भारत सक्रिय रहा है. ये सारी चीज़ें भारत को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्य के लिए योग्य बनाती हैं.”
भारतीय विदेश मंत्री ने कहा कि वैश्विक स्तर पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार को लेकर व्यापक सहमति है. एस जयशंकर ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का विस्तार केवल भारत के पक्ष में नहीं है बल्कि उनके लिए भी ठीक है, जो प्रतिनिधित्व से अब तक महरूम हैं. भारत सालों से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार की मांग कर रहा है. जयशंकर ने कहा कि अब समय आ गया है कि भारत को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता मिले. भारतीय विदेश मंत्री ने कहा कि अभी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की जो संरचना है, वह 21वीं सदी की भूराजनैतिक वास्तविकता को नहीं दर्शाता है.
भारतीय विदेश मंत्री ने कहा कि बदलती वैश्विक व्यवस्था में दुनिया भर के देशों की विदेश नीति प्रभावित हुई है. एस जयशंकर ने कहा, ”कोविड, टकराव, जलवायु परिवर्तन और आर्थिक अनिश्चितता के बीच सऊदी अरब के साथ भारत का संबंध स्थिर रहा है. हमारा संबंध और मज़बूत हुआ है. हम दोनों के हित साझे हैं और इसी का नतीजा था कि 2019 में स्ट्रैटिजिक पार्टनर्शिप काउंसिल बना था.”
सऊदी पर भारत की निर्भरता
ऊर्जा सुरक्षा के मामले में भी भारत खाड़ी के देशों पर निर्भर है. 2019 में सऊदी दौरे पर गए पीएम मोदी ने कहा था कि भारत सऊदी अरब से 18 फ़ीसदी कच्चा तेल और अपनी ज़रूरत की 30 फ़ीसदी एलपीजी सऊदी अरब से ही आयात करता है. इसके अलावा इराक़ और ईरान से भी भारत तेल आयात करता है. भारत अपनी ज़रूरत का 80 फ़ीसदी तेल आयात करता है. यूएई भारत का तीसरा सबसे बड़ा ट्रेड पार्टनर है और सऊदी अरब चौथा.
भारतीय विदेश मंत्री के सऊदी अरब दौरे को लेकर भारत में पाकिस्तान के उच्चायुक्त रहे अब्दुल बासित अपने मुल्क के नेताओं को आगाह किया है.
अब्दुल बासित ने अपने वीडियो ब्लॉग में कहा है, ”डिप्लोमैसी कोई ज़ीरो सम गेम नहीं होती है. डिप्लोमैसी में हर मुल्क अपने लिए मौक़े की तलाश करता रहता है. ऐसा नहीं है कि पाकिस्तान और सऊदी अरब में ऐतिहासिक रूप से अच्छे संबंध रहे हैं तो भारत और सऊदी अरब में अच्छे संबंध नहीं होंगे. सऊदी ने हमें हर मौक़े पर साथ दिया है. ख़ासकर 1998 के बाद भारत के जवाब में पाकिस्तान ने परमाणु परीक्षण किया तो सऊदी अरब ने खुलकर हमें साथ दिया था. 20 लाख पाकिस्तानी सऊदी अरब में काम करते हैं. ये पाकिस्तानी सऊदी से जो कमाकर भेजते हैं, वह हमारी अर्थव्यवस्था के लिए बहुत ज़रूरी है.”
अब्दुल बासित ने कहा, ”पाकिस्तान अच्छे भले ताल्लुकात को भी ख़राब कर लेता है. हम ऐसे-ऐसे काम करते हैं, जिनकी कोई ज़रूरत नहीं होती. एक तो हम बोलते बहुत हैं. हर चीज़ पर हम प्रतिक्रिया दे देते हैं, जिनकी कोई ज़रूरत नहीं होती. डिप्लोमैसी में बिना सोचे बोलना अपरिपक्वता को ही दर्शाता है.
“यमन से लेकर कश्मीर तक में हम देख सकते हैं. पिछले 10 सालों में हमने बहुत ही अपरिपक्व बयान दिए हैं. इन बयानों से सऊदी और यूएई से हमारे ताल्लुकात में नासमझी पैदा हुई. भारत ने खाड़ी के देशों में जो जगह बनाई है, उसे लेकर गंभीरता दिखानी चाहिए. भारत की जगह हमारी क़ीमत पर नहीं होनी चाहिए. इसलिए जयशंकर के दौरे को गंभीरता से देखना चाहिए. अगर हमारे हित जयशंकर के दौरे से प्रभावित होते हैं तो एक बड़ा झटका होगा. हमने अतीत में बहुत मज़ाक कर लिया है और गंभीरता दिखानी चाहिए.”
एस जयशंकर के सऊदी अरब दौरे पर सऊदी के विदेश मंत्रालय ने भी बयान जारी किया है.
सऊदी अरब ने अपने बयान में कहा है, ”सऊदी अरब के विदेश मंत्री प्रिंस फ़ैसल बिन फ़रहान ने भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर के साथ सऊदी-इंडियन स्ट्रैटेजिक पार्टनरशिप काउंसिल की बैठक की. इस बैठक में दोनों देशों के बीच राजनीतिक, सुरक्षा, संस्कृति और सोशल अफेयर्स से जुड़े संबंधों की समीक्षा की गई. सऊदी अरब के विज़न 2030 के तहत दोनों देशों ने आपसी निवेश बढ़ाने पर भी सहमति जताई है.”
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