पाकिस्तान, चीन, अफ़गानिस्तान जैसे अहम पड़ोसियों के साथ तनाव भरे रिश्तों के दौर में बांग्लादेश से मज़बूत संबंधों को भारत के लिए एक बड़ी राहत बताया जाता है.
बांग्लादेश में शेख हसीना और भारत में मोदी सरकार के आने के बाद दोनों देशों के संबंधों में नई चमक आई है. बांग्लादेश की पीएम शेख हसीना वाजेद और भारत के पीएम नरेंद्र मोदी 2015 से लेकर अब तक 12 बार मिल चुके हैं.
अगर तीस्ता नदी के पानी के बंटवारे और बॉर्डर इलाकों में भारतीय सुरक्षा बलों के हाथों बांग्लादेशियों की कथित हत्या का मामला छोड़ दिया तो दोनों के बीच सहयोग के कई समझौते हुए हैं.
मंगलवार को दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों की अगुआई में हुई द्विपक्षीय वार्ता में सात सहमति पत्रों पर हस्ताक्षर हुए. इनमें जल संसाधन, रेलवे, विज्ञान और तकनीक तथा अंतरिक्ष तकनीक से जुड़े विषय शामिल हैं.
दोनों देशों के बीच कुशियारा नदी जल बँटवारे पर समझौता हुआ जिसे पीएम मोदी ने महत्वपूर्ण बताया. इस समझौते से दक्षिणी असम और बांग्लादेश के सिलहट क्षेत्र को लाभ होगा.
दोनों नेताओं ने मैत्री सुपर थर्मल पावर प्रोजेक्ट के यूनिट-1 का भी अनावरण किया. भारत की मदद से काम करने वाली इस परियोजना से बांग्लादेश को 1320 मेगावाट बिजली मिलेगी.
बांग्लादेश अब दुनिया के सबसे पिछड़े देशों की सूची से निकल चुका है. बांग्लादेश ने मैन्युफैक्चरिंग और कृषि एक्सपोर्ट में उल्लेखनीय उपलब्धि हासिल करने के साथ ही स्वास्थ्य, महिला विकास और शिक्षा के क्षेत्र में भी अपने झंडे गाड़े हैं.
पिछले कुछ साल में यह एशिया की सबसे तेज रफ्तार अर्थव्यवस्थाओं में शुमार हो चुका है. हालांकि बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ऐसे वक्त में भारत आई हैं, जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल-गैस, मशीनरी और कच्चे माल कीमतों की वजह से उसके मुद्रा भंडार पर भारी दबाव बना हुआ है.
अपने फौरी आर्थिक संकट से निकलने के लिए इसने आईएमएफ से 400 अरब डॉलर का कर्ज़ मांगा है.
ज़ाहिर है ऐसे वक्त में बांग्लादेश को भारत की मदद की काफी ज़रूरत है. लेकिन भारत के लिए भी बांग्लादेश की ज़रूरत काफी बढ़ गई है. एशिया के मौजूदा सामरिक हालात और चीन, पाकिस्तान जैसे पड़ोसियों के साथ बढ़ते तनाव के मद्देनज़र बांग्लादेश पर भारत की रणनीतिक निर्भरता काफी बढ़ गई है.
भारत से बांग्लादेश क्या चाहता है?
शेख हसीना की यात्रा दोनों देश के सामरिक समीकरण के साथ ही आपसी कारोबारी बढ़ाने पर भी काफी जोर होगा. फिलहाल बांग्लादेश यही चाहता है. दोनों देशों ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, फिनटेक, साइबर सिक्योरिटी, स्टार्ट-अप्स और कनेक्टिविटी में अपनी पार्टनरशिप बढ़ाई है.
इस यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच होने वाले कॉम्प्रेहेंसिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप एग्रीमेंट यानी सीईपीए आने वाले दिनों में द्विपक्षीय कारोबार के लिए अहम भूमिका निभाएगा. हालांकि सीईपीए ऐसे वक्त हो रहा है जब बांग्लादेश 2026 के बाद भारतीय बाजार में अपने सामान की ड्यूटी फ्री और कोटा फ्री पहुंच खो देगा.
जाहिर है बांग्लादेश चाहेगा कि इसकी भरपाई के लिए भारत उसे अतिरिक्त सहूलियत दे. फिलहाल भारत को किए जाने वाले बांग्लादेशी निर्यात को काफी सहूलियत और रियायत हासिल है. इसलिए भारतीय बाजार में बांग्लादेशी सामानों की पैठ भी बढ़ती जा रही है.
बांग्लादेश का का निर्यात मजबूत होना भारत के हित में हैं क्योंकि ये ज्यादातर कच्चा माल भरत से आयात करता है.वर्ल्ड बैंक के एक वर्किंग पेपर के मुताबिक फ्री ट्रेड एग्रीमेंट के तहत बांग्लादेश का निर्यात 182 फीसदी बढ़ सकता है.
अगर भारत बांग्लादेश को कुछ अतिरिक्त कारोबारी सहूलियत देता है और ट्रांजेक्शन लागतों में कमी करता है तो ये निर्यात 300 फीसदी तक बढ़ सकता है. इससे भारत की रॉ मैटेरियल इंडस्ट्री से लेकर मैन्यूफैक्चरिंग और सर्विस सेक्टर दोनों को फायदा होगा. क्योंकि बांग्लादेश की बढ़ती जरूरतें भारत के लिए वहां बाजार मुहैया कराएंगीं.
बांग्लादेश भारत का छठा सबसे बड़ा ट्रेड पार्टनर है. दोनों के बीच 2009 में 2.4 अरब डॉलर का कारोबार होता था लेकिन 2020-21 में ये बढ़ कर 10.8 अरब कारोबार डॉलर होता है.
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पूर्वोत्तर भारत में अमन कायम करने में बांग्लादेश का रोल
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को शेख हसीना से मुलाकात के बाद कहा कि बांग्लादेश भारत के सबसे बड़े कारोबारी सहयोगियों में से एक है. भारत अब बांग्लादेश के साथ आईटी, स्पेस और न्यूक्लियर सेक्टर में सहयोग बढ़ाएगा.
याद रहे ये तीनों सेक्टरों भारत की विशेषज्ञता. लिहाजा कारोबारी सहयोग और बढ़ा तो इस सेक्टर से जुड़ी कंपनियों का बांग्लादेश में बाज़ार बढ़ेगा.
भारत हर साल 15 से 20 लाख बांग्लादेशियों को वीजा देता है, जो भारत में इलाज, नौकरी, पर्यटन और मनोरंजन के लिए आते हैं. जाहिर है इससे भारत की मेडिकल, लेबर, टूरिज्म और एंटरटेनमेंट सेक्टर की कमाई होती है.
पूर्वोत्तर भारत से बाकी भारत की कनेक्टिविटी और वहां शांति बहाल करने में भी शेख हसीना सरकार के सहयोग की अहम भूमिका रही है.
बीबीसी बांग्ला सेवा के संवाददाता शुभज्योति घोष कहते हैं, ” बांग्लादेश ने भारत को चटगांव बंदरगाह इस्तेमाल करने की अनुमति दे दी है. आज अगरतला से अखौरा तक रेल लिंक बन चुका है. आज अगरतला से कोई ढाका होकर कोलकाता आना चाहे तो आसानी से आ सकता है. भारत ने हसीना सरकार की मदद से त्रिपुरा में पावर प्लांट खोला है. इस तरह देखें तो भारत के पूर्वोत्तर राज्यों और बांग्लादेश के बीच संपर्क लगातार बढ़ता जा रहा है. हसीना सरकार के सहयोगी रुख से दोनों देशों के बीच सहयोग का एक नया आयाम खुल गया है.”
- शेख़ हसीना का भारत दौराः मुद्दे जो हैं भारत-बांग्लादेश के रिश्तों की दुखती रग

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बांग्लादेश की ज़मीन से भारतीय विरोधी गतिविधियों पर लगाम
शुभज्योति घोष आगे कहते हैं,” बांग्लादेश के कैंपों से पूर्वोत्तर भारत में अलगाववादी आंदोलन को जिस तरह से समर्थन मिल रहा था उसे कुचलने में भी हसीना सरकार ने अहम भूमिका निभाई है. वहां रह रहे अलगाववादी आंदोलन के बड़े नेताओं को हसीना सरकार ने भारत को सौंप दिए. इनमें उल्फा नेता अरविंद राजखोवा समेत कई दूसरे अलगाववादी नेता हैं. अब वे भारत से शांति वार्ता कर रहे हैं. ”
” हसीना सरकार ने बांग्लादेश की धरती से अपनी गतिविधियां चला रहे लगभग सभी अलगाववादियों नके नेटवर्क को कुचल दिया है. यहां तक कि पिछले दिनों असम के सीएम हिमंत बिस्व शर्मा ने कहा कि बांग्लादेश की वजह से आज उनके राज्य के लोग चैन की नींद सो पा रहे हैं. ”
” दरअसल पूर्वोत्तर में शांति और समृद्धि लाने में बांग्लादेश ने भारत के लिए अहम भूमिका निभाई है. इतना ही नहीं पूर्वोत्तर के बाकी भाारत से कनेक्टिविटी बेहतर करने में भी बांग्लादेश का बड़ा रोल है. त्रिपुरा कॉरिडोर जैसे इन्फ्रास्ट्रक्चर बांग्लादेश के सहयोग से ही बन सकता था. अब फेनी नदी के ऊपर बने पुल से बांग्लादेश से सामान लेकर सीधे त्रिपुरा पहुंचा जा सकता है. ”
” बांग्लादेश के साथ भारत की लगभग चार हजार किलोमीटर की सीमा लगती है. लिहाजा चीन और पाकिस्तान जैसे देशों की चुनौतियों को देखते हुए भारत के लिए इस इलाके में ऐसे देश की जरूरत है, जो उसका दोस्त हो. यही वजह है कि भारत को बांग्लादेश की मदद की जरूरत है. उससे नए तरीके से कनेक्टिविटी के उपाय किए जा रहे हैं. सार्क आज प्रभावी नहीं है लेकिन बीबीआईएन ( बांग्लादेश भूटान, भारत और नेपाल) लिंक के जरिये भारत बांग्लादेश के साथ अपने सहयोग और मजबूत करने की कोशिश में लगा है. ”
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भारत- बांग्लादेश समझौता

- भारत-बांग्लादेश सीमा पर कुशियारा नदी के पानी के बंटवारे पर समझौता.
- बांग्लादेश रेलवे के अधिकारियों को भारतीय रेलवे प्रशिक्षण संस्थानों में ट्रेनिंग मिलेगी.
- आईटी में बांग्लादेश रेलवे की मदद करेगा भारत. फ्रेट मैनेजमेंट सिस्टम और आईटी आधारित क्षमताओं को बढ़ाने में भारत-बांग्लादेश की मदद करेगा.
- बांग्लादेश के सुप्रीम कोर्ट और भारत की नेशनल ज्यूडिशल एकेडमी के बीच बांग्लादेश के लॉ अफसरों की भारत में ट्रेनिंग के लिए समझौता .
- भारत और बांग्लादेश के विज्ञान और औद्योगिक अनुसंधान परिषद के बीच सहयोग होगा.
- भारत और बांग्लादेश के बीच अंतरिक्ष क्षेत्र में सहयोग.
- टीवी प्रसारण के क्षेत्र में भारत के प्रसार भारती और बांग्लादेश टीवी के बीच समझौता.

चीन का चक्कर
भारतीय थिंक टैंक रिसर्च एंड इनफॉर्मेशन सिस्टम फॉर डेवलपिंग कंट्रीज (आरआईएस) के प्रोफेसर प्रवीर डे भारत-बांग्लादेश सहयोग के एक दूसरे पहलू का जिक्र करते हैं.
प्रोफेसर प्रवीर डे कहते हैं, ” अगर भारत बांग्लादेश की मदद लिए दो कदम आगे नहीं बढ़ाएगा तो चीन उसके लिए चार कदम आगे बढ़ कर आगे आ जाएगा. पद्मा नदी में हाल में जो पुल बना है उसे बांग्लादेश ने भले ही अपने पैसों से बनाया हो लेकिन उसके निर्माण में चीनी कंपनियों की मदद ली गई. अब हालात ये है कि ढाका के इर्द-गिर्द चीनी कामगारों की बस्तियां बन गई हैं. कई चीनी श्रमिक वहीं शादी कर बस गए हैं. तो इस तरह चीन की मौजूदगी भारत के लिए बड़ा खतरा बन सकता है. इस लिहाज से भी भारत का बांग्लादेश के साथ सहयोग मज़बूत करना ज़रूरी है. ”
बांग्लादेश भारत पर व्यापार बढ़ाने पर काफी जोर दे रहा है. 25 सामानों को छोड़ कर भारत ने उसके लगभग पूरे निर्यात को कई तरह की छूट दे रखी है. यही वजह है कि भारत में बांग्लादेश का निर्यात बढ़ रहा है.
प्रोफेसर डे कहते हैं, ” पूर्वोत्तर और बंगाल में भारत की कई छोटी कंपनियां सक्रिय हैं. इसके अलावा कई दूसरी बांग्लादेशी कंपनियां भारत में कारोबार कर रही हैं. भारत को बांग्लादेश का निर्यात बढ़ता ही जा रहा है. इस वक्त शेख हसीना के साथ 160 बांग्लादेशी कारोबारियों का शिष्टमंडल आया हुआ है. इतने बड़े दल के साथ उनका भारत आना काफी अहम माना जा रहा है.”
फेडरेशन ऑफ बांग्लादेश चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री यानी एफबीसीसीआई के मुताबिक वित्त वर्ष 2022-23 के आखिर तक बांग्लादेश से भारत को किया जाने वाला निर्यात बढ़ कर 2 अरब डॉलर का हो जाएगा. पिछले एक साल में भारत और बांग्लादेश का निर्यात 94 फीसदी बढ़ा है.
पूर्वोत्तर का सिलीगुड़ी के ज़रिये बाकी भारत से जो कनेक्टिविटी वो काफी अहम है. इसलिए पूर्वोत्तर से सटे बांग्लादेश की अहमियत हमारे लिए काफी बढ़ जाती है.
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कनेक्टिविटी और बांग्लादेश पर भारत की निर्भरता
गुवाहाटी स्थित डॉ. मिर्ज़ा ज़ुल्फिकुर्रहमान पूर्वोत्तर भारत में सीमा से जुड़े मुद्दों और वहां भारत, बांग्लादेश और चीन के संबंधों के विशेषज्ञ हैं.
डॉ. रहमान कहते हैं,”सिलीगुड़ी के जरिये पूर्वोत्तर की कनेक्टिविटी की वजह से हमारी बांग्लादेश पर रणनीतिक निर्भरता काफी बढ़ गई है. डोकलाम में चीनी सक्रियता की वजह से भी बांग्लादेश पर हमारी निर्भरता काफी बढ़ जाती है. ये इलाका भूटान के नजदीक है. भूटान के नजदीक होने की वजह से हमारे लिए बांग्लादेश की भूमिका और ज्यादा बढ़ जाती है ”
भारत और बांग्लादेश इस इलाके में कनेक्टिविटी बढ़ाने की कोशिश में लगे हैं.
डॉ. रहमान कहते हैं, ” सिलीगुड़ी के अलावा यहां हमारे पास संपर्क का कोई वैकल्पिक रास्ता नहीं है. इसलिए वैकल्पिक कनेक्टिविटी के लिए बीबीआईएन कॉरिडोर और बिम्सटेक के जरिये कोशिश चल रही है. कनेक्टिविटी के अलावा भारत की इंडो-पैसिफिक स्ट्रेटजी के लिहाज से भी बांग्लादेश की भूमिका काफी अहम हो जाती है. ”
- बांग्लादेश आईएमएफ़ से कर्ज़ क्यों मांग रहा है, क्या हुआ उसकी अर्थव्यवस्था को?

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डॉ. रहमान कहते हैं कि जहां तक पूर्वोत्तर में अलगाववादी विद्रोहियों को दबाने के सवाल है तो यह बाहर से यानी बांग्लादेश के सहयोग के बगैर संभव नहीं होता. इसलिए भारत की सुरक्षा से जुड़ी रणनीति के लिए बांग्लादेश, भूटान, नेपाल और श्रीलंका जैसे छोटे पड़ोसियों की अहमियत काफी अहम हो जाती है.
बांग्लादेश में पद्मा ब्रिज पर नए पुल का उद्घाटन किया गया है.ये कई मायनों में बेहद ख़ास है.
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